Friday, November 27, 2020

नारी मन :एक अंतर्द्वंद्व


कहते है
 नारी को समझना बहुत मुश्किल है उसे समझने में उम्र  बीत जाती हैऔर क्यों न हो   जब नारी की शारीरिक बनावट ही इतनी जटिल है तो निश्चित उसके मनोविज्ञान को समझना इतना आसान तो न होगा। मै  पेशे से एक चिकित्सक हूँ और होम्योपैथिक महाविद्यालय में क्रिया विज्ञान की प्राध्यापक भी हूँ इसके अंतर्गत जब महिला प्रजनन तंत्र पढ़ाती हु तो  ईश्वर की रचनात्मकता को सोचकर हैरान रह जाती हु कि किस तरह  उन्होंने नारी का मनुष्य रूप  गढ़ा होगा ,नारी की सृजनात्मक शक्ति को बनाने में उस परमपिता परमेश्वर को भी कितनी बुद्धि और क्षमता का उपयोग  करना पड़ा होगा  ।
बचपन से लेकर बूढ़े होने तक की उम्र में कितने शारीरिक परिवर्तन से गुजरती है नारी और ये परिवर्तन उसकी मनोस्थिति पर कितना प्रभाव डालते है,हर उम्र में एक द्वन्द चलता ही रहता है उसके कोमल मन में।
उस पर हमारा सामाजिक  वातावरण जिसने उसे एक अलग वर्ग में स्थान दे दिया है,अपनी बनावट से  हर समय डरी ,लज्जित होती,भद्दे ताने सुनती नारी सच में  अपने आपको दोयम दर्जे का मान लेती है ,जबकि प्रजनन तंत्र  के अलावा नारी और पुरुष के किसी भी तंत्र में खास अंतर नहीं है। जिस देश में कन्या पूजन होता है वहा  आज भी सेकड़ो कन्याएं उपेक्षित जीवन जीती है। माहवारी के समय पर्याप्त साफ सफाई, ,पोषण के अभाव में   संक्रमण  की शिकार हो जाती है और हर महीने की ये तकलीफ उनको रुला जाती है।
 बच्चा पैदा न होना या देर से होना सबमे उसके अंतर्मन में चोट पहुँचती है , माना कि नारी को पूर्णता माँ बनकर ही मिलती है पर क्या इसके  अभाव में वो अपने जीवन की पूर्णता को नहीं पा सकती ,इस तरह की अपेक्षाओं के बोझ तले कितनी ही महिलाये अपना सकल जीवन कुंठा और अवसाद में बिता देती है।
माँ बनकर भी वो अपने बच्चो एवं परिवार   में रम जाती है अपना सारा ध्यान उनके पालन पोषण एवं शिक्षा पर लगाकर उनके जीवन को   सफल बनाने मे गुजार  देती है फिर बच्चे बड़े होकर व्यस्त हो जाते है अपना जीवन अपने ढंग से जीने लगते है। अपनी बढ़ती उम्र के साथ फिर से जीवन के उतार-  चढ़ाव  का गुणा भाग नारी के अंतर्मन में निरंतर चलता ही रहता है।

महिला दिवस विशेष

मेरी मंगल कामना है हर बार जन्म लु मैं नारी बनकर, कोमलता से परिपूर्ण, चट्टान जैसी दृढ़ता रहे सदा।। नहीं सीखा मैंने हारना विषम परिस...