कोमलता से परिपूर्ण, चट्टान जैसी दृढ़ता रहे सदा।।
नहीं सीखा मैंने हारना विषम परिस्थितियों में भी
पर हार जाती हूँ हृदय अपना उनकी खातिर जिनको मानती हूं मैं सर्वस्व अपना ।।
अपनों की खातिर लड़ जाती हूं ईश्वर से भी
फिर उन्हीं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ अपनो के लिये
मेरे मन के अंतर मे सदैव प्रेम की अविरल नदियां बहती रहे
अपनों को सुख देकर में हर पल सुखी संतुष्ट रहु ।।
मेरा ये स्नेह और प्यार ना अहसान है, ना ही उपकार हैं
ये तो ईश्वर प्रदत्त नैसर्गिक उपहार है ।।
संसार रूपी भवसागर के नर नारी संतुलन है
बिन नारी नर अधूरा है,
तो बिन नर नारी कहां संपूर्ण हैं
पिता ,भाई ,पति ,बेटा ,दोस्त ये सब रूप बखुबी निभाता है, नारी के सम्मान को नर ही तो बढ़ाता है ।।
फिर भी मेरी मंगल कामना हैं पुन: जन्म लु नारी बनकर।।
It's beautiful😍 just like you mam❤
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