Monday, December 21, 2020

पुरुष रजोनिवृत्ति:''' अनछुआ पहलु

जीवन के कुछ पहलु  अनछुए से ही रह जाते है जिनके बारे में बहुत देर से या कम ही ज्ञान होता है।
         ऐसे ही अनछुए विषय में हम आज बात कर रहे है और वो है पुरुष रजोनिवृति जिसे सामान्य शब्दों में एंड्रोपॉज़ कहते है।
पुरुष रजोनिवृति तो सबसे पहले जेहन में एक ही बात आती है कि पुरुष में माहवारी तो होती नहीं फिर मेनोपॉज़ कैसे ?
जी हाँ बिल्कुल सही है  लेकिन पुरुषो में भी उम्र सम्बंधित हॉर्मोन्स परिवर्तन तो होता ही है इस  विषय को महिलाओ से जोड़कर ही देखा  जाता है पर पुरुष के जीवन में भी यह प्रक्रिया होती है जो कि एक बीमारी न होकर एक सामान्य  फिजियोलॉजिकल प्रक्रिया है ,जो हर पुरुष के जीवन में 50  से 60 की उम्र के बीच होती है ,जब उनके हॉर्मोन्स असंतुलित होने लगते है एवं टेस्टोस्टेरॉन व एंड्रोजन की कमी होने लगती है जिससे उन्हें सेहत सम्बन्धी समस्याएं आने लगती है जैसे हृदय से सम्बंधित बीमारी ,पाचन तंत्र कमजोर होना ,हड्डियाँ कमजोर होना ,याददाश्त में कमी ,बाल झड़ना ,मांसपेशियों का कमजोर होना ,अनिच्छा ,तनाव , अवसाद और महिलाओ की तरह उनमे भी मूड़ स्विंग होता है ,जिससे कभी हँसना ,कभी गुस्सा या चिड़चिड़ापन आने लगता है चूँकि पुरुषो में इस तरह के लक्षण आने में और कारण जानने में समय लग जाता है जिससे  कई पुरुष सही समय पर उचित समाधान ना  मिलने पर अनिंद्रा ,तनाव एवं अवसाद जैसी समस्याओंसे घिर जाते है।  
हमारी संस्कृति एवं परिवारों में पहले से ही लड़को के मन में ये बाते डाल दी जाती है कि मर्द को दर्द नहीं होता ,क्या लड़कियों की तरह रोते हो  परन्तु ऐसा नहीं है मर्द को भी दर्द होता है उन्हें भी भावनात्मक संबल की आवश्यकता होती है ,बल्कि उन्हें महिलाओ से ज्यादा इसकी जरुरत है।
पुरुष रजोनिवृति भी पुरुषों के जीवन का वही दौर है जब उन्हें भावनात्मक सहारे की सबसे अधिक आवश्यकता रहती है  इस दौरान उनकी मनोस्थिती काफी तेजी से बदलती है  और उन्हें अकेलापन महसूस होने लगता है क्योकि इस उम्र में आकर उनकी शारीरिक क्षमता कम होने लगती है जिस घर एवं परिवार के लिए उनके निर्णय ही महत्वपूर्ण रहते थे वही अब उनके बच्चे बड़े होने से अपने विचारो को ही प्राथमिकता देते है उनके विचारो से सहमत नहीं होते।
उनकी सहगामिनी जो हमेशा अपने पति के हर निर्णय में सहभागी रही बच्चो के बड़े होने पर उनके निर्णय में सम्मिलित होने लगती है जिससे कि  इस उम्र के  पुरुषो  को अकेलापन महसूस होने लगता है ,उन्हें उपेक्षित सा लगने लगता है।  वो इस परिस्थिति को स्वीकार नहीं कर पाते है क्योकि जिस घर एवं  परिवार में उनका महत्व ही सर्वोपरि था वो  शनैः शनैः  क्षीण लगने लगता है उन्हें ,इसलिए वो चिड़चिड़े हो जाते है। उन्हें बात- बात पर  गुस्सा आने लगता है अर्थात ये उम्र पुरुषो के जीवन में शारीरिक ,मानसिक और हार्मोनल बदलाव की अवस्था है ,जिसमे उन्हें ज्यादा भावनात्मक सपोर्ट  दिया जाना चाहिए।  उन्हें तनाव न हो इस बात का ध्यान रखना जरुरी है।
पुरुषो का  ज्यादातर जीवन तनाव में ही गुजरता है जब वो जवान होते  है उन  पर घर -परिवार ,बच्चो की शिक्षा ,शादी आदि के लिए आर्थिक संसाधन जुटाना नितांत जरुरी
जिम्मेदारी होती है ,
जिसे पूर्ण करने के लिए नौकरी,व्यापार  या अन्य कोई कार्य करते हुए उसका ज्यादातर समय तनाव में ही गुजरता है अपने परिवार की खुशियों के लिए वो खुद हर प्रकार के तनाव से रोज दो -चार  होते है. युवावस्था में तो ये तनाव जीवन का एक हिस्सा है ये मानकर व्यस्तता के चलते उस पर ध्यान नहीं जाता और   उसका प्रभाव दैनिक जीवन पर नहीं पड़ता जितना की इस उम्र में पड़ता है, इसलिए हमारा ये कर्तव्य  है कि हम हमारे परिवार के इस उम्र के पुरुषों की मनोस्थिति को समझे , उन्हें सहारा दें, उनके निर्णय क्षमता पर हासपरिहास एवं व्यंग न करें क्योकि उनके मजबूत इरादों से ही हमारा परिवार मुस्कुरा रहा है
उनके जीवन जीने की प्रणाली को, उनके कार्य करने के तरीके को अपनाये, हम उसमे अपना आधुनिकीकरण  सकते है   पर उसके लिए उनसे स्वस्थ एवं सहज वार्तालाप  करें ,उनके अनुभवों को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाये व उन्हें आश्वस्त  करे कि वे हमारे जीवन की अमूल्य धरोहर है जिसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है।  वो हमारे लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं जिससे वो हमारे साथ और हम उनके साथ  मिल जुलकर एक स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन जी सके।

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