Monday, June 21, 2021

योग दिवस विशेष योग के प्रथम पुरुष : आदियोगी

योग व्यायाम मात्र नहीं है बल्कि स्वयं के साथ व प्रकृति के साथ एकत्व का भाव है, हमारी आध्यात्मिक चेतना का विस्तार है योग।
योग अर्थात् जुड़ना : जुड़ना परमात्मा से, अपने मन से, आत्मा से, बुद्धि से, इन्द्रियों से,शरीर से।
योग सतही नही होता है यह एक गहन अनुभूति है जिसमें भौतिकता का समावेश न होकर आध्यात्मिकता का समावेश ही नितांत आवश्यक है क्योंकि जब तक एक योगी अपनी आत्मा, अपने मन से नहीं जुड़ पायेगा तब तक वह बाहरी आवरण यानि शरीर से नहीं जुड़ पायेगा अतः योग से रोग का आशय ये नहीं है कि कोई भी बीमारी से संबंधित योगासन द्वारा शरीर को स्वस्थ किया जाये अपितु यहां आवश्यकता इस बात की है कि योग के सूक्ष्म ज्ञान को जानकर इसे एक गहन साधना के रूप में किया है जाये । एक योगिक आध्यात्मिक साधना जिसका परिणाम शारीरिक ,मानसिक और भौतिक रूप से शत प्रतिशत प्राप्त होगा।
योगिक कथाओ के साक्ष्यानुसार ग्रीष्म संक्रांति के दिन अपने ध्यान साधना से जागने के बाद आदियोगी ( जो योग के प्रथम पुरुष है ) दक्षिण की ओर घूमे जहाँ उनकी दृष्टि सप्त ऋषियों पर पड़ी जो उनके प्रथम सात शिष्य थे जो योग विज्ञानं को संसार के हर स्थान में ले गए। 
योग का प्रथम प्रसार शिव द्वारा उनके इन्हीं सात शिष्यों के बीच किया गया था ,ग्रीष्म संक्रांति के बाद आनेवाली पहली पूर्णमासी के दिन आदियोगी द्वारा इन सप्त ऋषियों को दीक्षा दी गई थी जिसे शिव के अवतरण के रूप में मनाते है ये संधिकाल दक्षिणायन  के तौर पर जाना जाता है 
भारतीय वैदिक गणना के अनुसार ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाते है। 
इस दिन सूर्य, पृथ्वी की दृष्टि से उत्तर से दक्षिण की ओर चलना शुरु   करते है यानि अब तक सूर्य उत्तरी गोलार्ध के सामने थे अब दक्षिणी गोलार्ध की तरफ बढ़ना शुरु  हो जाते है योग की दृष्टि से यह समय संक्रमण काल माना जाता है यानि एक योगी के  लिए यह रूपांतरण का समय है।  
वर्तमान में भी योग दिवस को सूर्य के प्रभाव से ही  निश्चित कर मनाया जा रहा है क्योकि साल के ३६५ दिनों में से २१ जून साल का सबसे बड़ा दिन होता है ,२१ जून के दिन सूर्य जल्दी उदय होते है और देर से अस्त होते है इस दिन सूर्य का  तप सबसे ज्यादा प्रभावी होता है इसी वजह से २१ जून का महत्व योग साधना में वैदिक व आधुनिक काल से महत्वपूर्ण है। 
रूपांतरण की इस अप्रतिम घड़ी में योग एवम आध्यात्म के आदि अनादि पलों को अपने जीवन में , चरित्र में आत्मसात करके शिव में एकाकार हो जाये यही इस दिवस की सार्थकता है

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