Tuesday, March 8, 2022

महिला दिवस विशेष

मेरी मंगल कामना है हर बार जन्म लु मैं नारी बनकर,
कोमलता से परिपूर्ण, चट्टान जैसी दृढ़ता रहे सदा।।
नहीं सीखा मैंने हारना विषम परिस्थितियों में भी
पर हार जाती हूँ हृदय अपना उनकी खातिर जिनको मानती हूं मैं सर्वस्व अपना ।।
अपनों की खातिर लड़ जाती हूं ईश्वर से भी 
फिर उन्हीं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ अपनो के लिये
मेरे मन के अंतर मे सदैव प्रेम की अविरल नदियां बहती रहे
अपनों को सुख देकर में हर पल सुखी संतुष्ट रहु ।।
मेरा ये स्नेह और प्यार ना अहसान है, ना ही उपकार हैं
ये तो ईश्वर प्रदत्त नैसर्गिक उपहार है ।।
संसार रूपी भवसागर के नर नारी संतुलन है
बिन नारी नर अधूरा है, 
तो बिन नर नारी कहां संपूर्ण हैं
पिता ,भाई ,पति ,बेटा ,दोस्त ये सब रूप बखुबी निभाता है, नारी के सम्मान को नर ही तो बढ़ाता है ।।
फिर भी मेरी मंगल कामना हैं पुन: जन्म लु नारी बनकर।।

Monday, June 21, 2021

योग दिवस विशेष योग के प्रथम पुरुष : आदियोगी

योग व्यायाम मात्र नहीं है बल्कि स्वयं के साथ व प्रकृति के साथ एकत्व का भाव है, हमारी आध्यात्मिक चेतना का विस्तार है योग।
योग अर्थात् जुड़ना : जुड़ना परमात्मा से, अपने मन से, आत्मा से, बुद्धि से, इन्द्रियों से,शरीर से।
योग सतही नही होता है यह एक गहन अनुभूति है जिसमें भौतिकता का समावेश न होकर आध्यात्मिकता का समावेश ही नितांत आवश्यक है क्योंकि जब तक एक योगी अपनी आत्मा, अपने मन से नहीं जुड़ पायेगा तब तक वह बाहरी आवरण यानि शरीर से नहीं जुड़ पायेगा अतः योग से रोग का आशय ये नहीं है कि कोई भी बीमारी से संबंधित योगासन द्वारा शरीर को स्वस्थ किया जाये अपितु यहां आवश्यकता इस बात की है कि योग के सूक्ष्म ज्ञान को जानकर इसे एक गहन साधना के रूप में किया है जाये । एक योगिक आध्यात्मिक साधना जिसका परिणाम शारीरिक ,मानसिक और भौतिक रूप से शत प्रतिशत प्राप्त होगा।
योगिक कथाओ के साक्ष्यानुसार ग्रीष्म संक्रांति के दिन अपने ध्यान साधना से जागने के बाद आदियोगी ( जो योग के प्रथम पुरुष है ) दक्षिण की ओर घूमे जहाँ उनकी दृष्टि सप्त ऋषियों पर पड़ी जो उनके प्रथम सात शिष्य थे जो योग विज्ञानं को संसार के हर स्थान में ले गए। 
योग का प्रथम प्रसार शिव द्वारा उनके इन्हीं सात शिष्यों के बीच किया गया था ,ग्रीष्म संक्रांति के बाद आनेवाली पहली पूर्णमासी के दिन आदियोगी द्वारा इन सप्त ऋषियों को दीक्षा दी गई थी जिसे शिव के अवतरण के रूप में मनाते है ये संधिकाल दक्षिणायन  के तौर पर जाना जाता है 
भारतीय वैदिक गणना के अनुसार ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाते है। 
इस दिन सूर्य, पृथ्वी की दृष्टि से उत्तर से दक्षिण की ओर चलना शुरु   करते है यानि अब तक सूर्य उत्तरी गोलार्ध के सामने थे अब दक्षिणी गोलार्ध की तरफ बढ़ना शुरु  हो जाते है योग की दृष्टि से यह समय संक्रमण काल माना जाता है यानि एक योगी के  लिए यह रूपांतरण का समय है।  
वर्तमान में भी योग दिवस को सूर्य के प्रभाव से ही  निश्चित कर मनाया जा रहा है क्योकि साल के ३६५ दिनों में से २१ जून साल का सबसे बड़ा दिन होता है ,२१ जून के दिन सूर्य जल्दी उदय होते है और देर से अस्त होते है इस दिन सूर्य का  तप सबसे ज्यादा प्रभावी होता है इसी वजह से २१ जून का महत्व योग साधना में वैदिक व आधुनिक काल से महत्वपूर्ण है। 
रूपांतरण की इस अप्रतिम घड़ी में योग एवम आध्यात्म के आदि अनादि पलों को अपने जीवन में , चरित्र में आत्मसात करके शिव में एकाकार हो जाये यही इस दिवस की सार्थकता है

Sunday, March 21, 2021

आखरी ख़त : सयानी बिटिया का


बेटी के जन्म से लेकर उसके बढ़ने के साथ साथ उसको समझना ,समझाना या कोई भी उँचनीच बताना मतलब बहस का अनवरत सिलसिला जो कि प्रायः संबंधों की मिठास को खत्म कर देता है इसलिए मैंने एक नए तरीके का प्रयोग किया अपनी बेटी को हर वर्ष उसके जन्मदिवस पर ख़त का उपहार दिया।
तुम्हारे हर जन्मदिन पर तुम्हारा   लता की तरह यूँ  बढ़ते जाना  और तुम्हारे  साथ मुझे संवाद स्थापित करना ,दोनों ही बहुत रोमाँचक अनुभव था तुमसे वो सब कहना ,समझाना और फिर तुम्हारा मेरे उन  विचारो के प्रति अपने मंतव्य  को व्यक्त करना ,हमारे सहज मैत्री संबंध  को समाप्त भी कर सकता था ,इसलिए तुम्हारे हर जन्मदिन पर तुमको एक ख़त मेरी ओर से उपहारस्वरूप मिलता गया ,जिसमे बीते  वर्ष  और आनेवाले वर्ष की तुमसे जुडी तमाम बातो का ज़िक्र होता जिसे तुम बेहद संजीदगी से पढ़ती ,समझती और मुझे उसका प्रत्युत्तर  ख़त  से ही देकर आश्वस्त करती जाती।
मेरा और तुम्हारा रिश्ता माँ बेटी के आवरण से मुक्त होकर कब अभिन्न सहेली का बन गया पता ही नहीं चला। फिर आया तुम्हारी शादी के पहले का वो जन्मदिन  जब मैंने अपने जीवन के समस्त अनुभवों का निचोड़ तुम्हे उस ख़त में लिखा  एवं तुम्हारी तरफ से उस ख़त  का प्रत्युत्तर  भी ख़त  के रूप में मुझे मिला ,जिसमे तुम्हारे द्वारा लिखी गई एक पंक्ति ''माँ मै तो आपकी ही छाया हूँ '' ने मुझे अंतर्मन की गहराईओं तक भावविभोर कर  दिया और साथ ही आश्वस्त कर दिया कि मेरी परवरिश और  तुम्हारा सयानापन तुम्हें  जिंदगी में सदैव अग्रिम पंक्ति में स्थापित करेगा अतः अब तुम्हे मुझे ख़त प्रेषित करने की अपेक्षा ही नहीं रह गई है।
तुम्हारे द्वारा प्रेषित वो भावनात्मक ख़त मेरे जीवन का अविस्मरणीय और अद्भुत ख़त बन गया ,क्योंकि अब तुम मेरी प्रतिमूर्ति जो बन गई हो।

Sunday, March 7, 2021

नारी हूँ मैं नारी हूं ‌: महिला दिवस पर समर्पित कुछ पंक्तियां

शीतल बयार हूँ  ,नाजुक गुलाब हूँ  
प्रसन्न बहार हूँ  , मजबूत पहाड़ हूँ ।
चंचल नदी हूँ  ,शांत गगन हूँ  
सहनशील  धरा हूँ  ,गहरा  सागर हूँ ।
कभी लक्ष्मी तो कभी दुर्गाहूँ  
कभी राधा तो कभी सीता हूँ ।
कभी शबरी तो कभी मीरा हूँ  
कभी काली तो कभी चंडी हूँ ।

है रूप अनेकों पर भावना अपार है
दिल में ममता और करुणा का भंडार है।
अपनों के लिए  समर्पित मेरा सारा संसार है
 जुदा है  वजूद मेरा , हिम्मत ना मैंं कभी  हारी हूँूू
नाज़ुक हूं कमजोर नहीं, हां नारी हूं मैं नारी हूं।

Monday, December 21, 2020

पुरुष रजोनिवृत्ति:''' अनछुआ पहलु

जीवन के कुछ पहलु  अनछुए से ही रह जाते है जिनके बारे में बहुत देर से या कम ही ज्ञान होता है।
         ऐसे ही अनछुए विषय में हम आज बात कर रहे है और वो है पुरुष रजोनिवृति जिसे सामान्य शब्दों में एंड्रोपॉज़ कहते है।
पुरुष रजोनिवृति तो सबसे पहले जेहन में एक ही बात आती है कि पुरुष में माहवारी तो होती नहीं फिर मेनोपॉज़ कैसे ?
जी हाँ बिल्कुल सही है  लेकिन पुरुषो में भी उम्र सम्बंधित हॉर्मोन्स परिवर्तन तो होता ही है इस  विषय को महिलाओ से जोड़कर ही देखा  जाता है पर पुरुष के जीवन में भी यह प्रक्रिया होती है जो कि एक बीमारी न होकर एक सामान्य  फिजियोलॉजिकल प्रक्रिया है ,जो हर पुरुष के जीवन में 50  से 60 की उम्र के बीच होती है ,जब उनके हॉर्मोन्स असंतुलित होने लगते है एवं टेस्टोस्टेरॉन व एंड्रोजन की कमी होने लगती है जिससे उन्हें सेहत सम्बन्धी समस्याएं आने लगती है जैसे हृदय से सम्बंधित बीमारी ,पाचन तंत्र कमजोर होना ,हड्डियाँ कमजोर होना ,याददाश्त में कमी ,बाल झड़ना ,मांसपेशियों का कमजोर होना ,अनिच्छा ,तनाव , अवसाद और महिलाओ की तरह उनमे भी मूड़ स्विंग होता है ,जिससे कभी हँसना ,कभी गुस्सा या चिड़चिड़ापन आने लगता है चूँकि पुरुषो में इस तरह के लक्षण आने में और कारण जानने में समय लग जाता है जिससे  कई पुरुष सही समय पर उचित समाधान ना  मिलने पर अनिंद्रा ,तनाव एवं अवसाद जैसी समस्याओंसे घिर जाते है।  
हमारी संस्कृति एवं परिवारों में पहले से ही लड़को के मन में ये बाते डाल दी जाती है कि मर्द को दर्द नहीं होता ,क्या लड़कियों की तरह रोते हो  परन्तु ऐसा नहीं है मर्द को भी दर्द होता है उन्हें भी भावनात्मक संबल की आवश्यकता होती है ,बल्कि उन्हें महिलाओ से ज्यादा इसकी जरुरत है।
पुरुष रजोनिवृति भी पुरुषों के जीवन का वही दौर है जब उन्हें भावनात्मक सहारे की सबसे अधिक आवश्यकता रहती है  इस दौरान उनकी मनोस्थिती काफी तेजी से बदलती है  और उन्हें अकेलापन महसूस होने लगता है क्योकि इस उम्र में आकर उनकी शारीरिक क्षमता कम होने लगती है जिस घर एवं परिवार के लिए उनके निर्णय ही महत्वपूर्ण रहते थे वही अब उनके बच्चे बड़े होने से अपने विचारो को ही प्राथमिकता देते है उनके विचारो से सहमत नहीं होते।
उनकी सहगामिनी जो हमेशा अपने पति के हर निर्णय में सहभागी रही बच्चो के बड़े होने पर उनके निर्णय में सम्मिलित होने लगती है जिससे कि  इस उम्र के  पुरुषो  को अकेलापन महसूस होने लगता है ,उन्हें उपेक्षित सा लगने लगता है।  वो इस परिस्थिति को स्वीकार नहीं कर पाते है क्योकि जिस घर एवं  परिवार में उनका महत्व ही सर्वोपरि था वो  शनैः शनैः  क्षीण लगने लगता है उन्हें ,इसलिए वो चिड़चिड़े हो जाते है। उन्हें बात- बात पर  गुस्सा आने लगता है अर्थात ये उम्र पुरुषो के जीवन में शारीरिक ,मानसिक और हार्मोनल बदलाव की अवस्था है ,जिसमे उन्हें ज्यादा भावनात्मक सपोर्ट  दिया जाना चाहिए।  उन्हें तनाव न हो इस बात का ध्यान रखना जरुरी है।
पुरुषो का  ज्यादातर जीवन तनाव में ही गुजरता है जब वो जवान होते  है उन  पर घर -परिवार ,बच्चो की शिक्षा ,शादी आदि के लिए आर्थिक संसाधन जुटाना नितांत जरुरी
जिम्मेदारी होती है ,
जिसे पूर्ण करने के लिए नौकरी,व्यापार  या अन्य कोई कार्य करते हुए उसका ज्यादातर समय तनाव में ही गुजरता है अपने परिवार की खुशियों के लिए वो खुद हर प्रकार के तनाव से रोज दो -चार  होते है. युवावस्था में तो ये तनाव जीवन का एक हिस्सा है ये मानकर व्यस्तता के चलते उस पर ध्यान नहीं जाता और   उसका प्रभाव दैनिक जीवन पर नहीं पड़ता जितना की इस उम्र में पड़ता है, इसलिए हमारा ये कर्तव्य  है कि हम हमारे परिवार के इस उम्र के पुरुषों की मनोस्थिति को समझे , उन्हें सहारा दें, उनके निर्णय क्षमता पर हासपरिहास एवं व्यंग न करें क्योकि उनके मजबूत इरादों से ही हमारा परिवार मुस्कुरा रहा है
उनके जीवन जीने की प्रणाली को, उनके कार्य करने के तरीके को अपनाये, हम उसमे अपना आधुनिकीकरण  सकते है   पर उसके लिए उनसे स्वस्थ एवं सहज वार्तालाप  करें ,उनके अनुभवों को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाये व उन्हें आश्वस्त  करे कि वे हमारे जीवन की अमूल्य धरोहर है जिसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है।  वो हमारे लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं जिससे वो हमारे साथ और हम उनके साथ  मिल जुलकर एक स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन जी सके।

Friday, November 27, 2020

नारी मन :एक अंतर्द्वंद्व


कहते है
 नारी को समझना बहुत मुश्किल है उसे समझने में उम्र  बीत जाती हैऔर क्यों न हो   जब नारी की शारीरिक बनावट ही इतनी जटिल है तो निश्चित उसके मनोविज्ञान को समझना इतना आसान तो न होगा। मै  पेशे से एक चिकित्सक हूँ और होम्योपैथिक महाविद्यालय में क्रिया विज्ञान की प्राध्यापक भी हूँ इसके अंतर्गत जब महिला प्रजनन तंत्र पढ़ाती हु तो  ईश्वर की रचनात्मकता को सोचकर हैरान रह जाती हु कि किस तरह  उन्होंने नारी का मनुष्य रूप  गढ़ा होगा ,नारी की सृजनात्मक शक्ति को बनाने में उस परमपिता परमेश्वर को भी कितनी बुद्धि और क्षमता का उपयोग  करना पड़ा होगा  ।
बचपन से लेकर बूढ़े होने तक की उम्र में कितने शारीरिक परिवर्तन से गुजरती है नारी और ये परिवर्तन उसकी मनोस्थिति पर कितना प्रभाव डालते है,हर उम्र में एक द्वन्द चलता ही रहता है उसके कोमल मन में।
उस पर हमारा सामाजिक  वातावरण जिसने उसे एक अलग वर्ग में स्थान दे दिया है,अपनी बनावट से  हर समय डरी ,लज्जित होती,भद्दे ताने सुनती नारी सच में  अपने आपको दोयम दर्जे का मान लेती है ,जबकि प्रजनन तंत्र  के अलावा नारी और पुरुष के किसी भी तंत्र में खास अंतर नहीं है। जिस देश में कन्या पूजन होता है वहा  आज भी सेकड़ो कन्याएं उपेक्षित जीवन जीती है। माहवारी के समय पर्याप्त साफ सफाई, ,पोषण के अभाव में   संक्रमण  की शिकार हो जाती है और हर महीने की ये तकलीफ उनको रुला जाती है।
 बच्चा पैदा न होना या देर से होना सबमे उसके अंतर्मन में चोट पहुँचती है , माना कि नारी को पूर्णता माँ बनकर ही मिलती है पर क्या इसके  अभाव में वो अपने जीवन की पूर्णता को नहीं पा सकती ,इस तरह की अपेक्षाओं के बोझ तले कितनी ही महिलाये अपना सकल जीवन कुंठा और अवसाद में बिता देती है।
माँ बनकर भी वो अपने बच्चो एवं परिवार   में रम जाती है अपना सारा ध्यान उनके पालन पोषण एवं शिक्षा पर लगाकर उनके जीवन को   सफल बनाने मे गुजार  देती है फिर बच्चे बड़े होकर व्यस्त हो जाते है अपना जीवन अपने ढंग से जीने लगते है। अपनी बढ़ती उम्र के साथ फिर से जीवन के उतार-  चढ़ाव  का गुणा भाग नारी के अंतर्मन में निरंतर चलता ही रहता है।

महिला दिवस विशेष

मेरी मंगल कामना है हर बार जन्म लु मैं नारी बनकर, कोमलता से परिपूर्ण, चट्टान जैसी दृढ़ता रहे सदा।। नहीं सीखा मैंने हारना विषम परिस...