बेटी के जन्म से लेकर उसके बढ़ने के साथ साथ उसको समझना ,समझाना या कोई भी उँचनीच बताना मतलब बहस का अनवरत सिलसिला जो कि प्रायः संबंधों की मिठास को खत्म कर देता है इसलिए मैंने एक नए तरीके का प्रयोग किया अपनी बेटी को हर वर्ष उसके जन्मदिवस पर ख़त का उपहार दिया।
तुम्हारे हर जन्मदिन पर तुम्हारा लता की तरह यूँ बढ़ते जाना और तुम्हारे साथ मुझे संवाद स्थापित करना ,दोनों ही बहुत रोमाँचक अनुभव था तुमसे वो सब कहना ,समझाना और फिर तुम्हारा मेरे उन विचारो के प्रति अपने मंतव्य को व्यक्त करना ,हमारे सहज मैत्री संबंध को समाप्त भी कर सकता था ,इसलिए तुम्हारे हर जन्मदिन पर तुमको एक ख़त मेरी ओर से उपहारस्वरूप मिलता गया ,जिसमे बीते वर्ष और आनेवाले वर्ष की तुमसे जुडी तमाम बातो का ज़िक्र होता जिसे तुम बेहद संजीदगी से पढ़ती ,समझती और मुझे उसका प्रत्युत्तर ख़त से ही देकर आश्वस्त करती जाती।
मेरा और तुम्हारा रिश्ता माँ बेटी के आवरण से मुक्त होकर कब अभिन्न सहेली का बन गया पता ही नहीं चला। फिर आया तुम्हारी शादी के पहले का वो जन्मदिन जब मैंने अपने जीवन के समस्त अनुभवों का निचोड़ तुम्हे उस ख़त में लिखा एवं तुम्हारी तरफ से उस ख़त का प्रत्युत्तर भी ख़त के रूप में मुझे मिला ,जिसमे तुम्हारे द्वारा लिखी गई एक पंक्ति ''माँ मै तो आपकी ही छाया हूँ '' ने मुझे अंतर्मन की गहराईओं तक भावविभोर कर दिया और साथ ही आश्वस्त कर दिया कि मेरी परवरिश और तुम्हारा सयानापन तुम्हें जिंदगी में सदैव अग्रिम पंक्ति में स्थापित करेगा अतः अब तुम्हे मुझे ख़त प्रेषित करने की अपेक्षा ही नहीं रह गई है।
तुम्हारे द्वारा प्रेषित वो भावनात्मक ख़त मेरे जीवन का अविस्मरणीय और अद्भुत ख़त बन गया ,क्योंकि अब तुम मेरी प्रतिमूर्ति जो बन गई हो।
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